ग्वालियर। 10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात 1रू30 बजे जब सुरक्षा व्यवस्था में तैनात दो डीएसपी सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे और कचरे में खाना ढूंढ रहे भिखारी को देखते है तो एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट दे देता है। जब दोनों डीएसपी वहां से जाने लगते है तो भिखारी डीएसपी को नाम से पुकाराता है। जिसके बाद दोनों अचंभित हो जाते है और पलट कर जब गौर से भिखारी को पहचानते है तो वह खुद भी हैरान रह गए क्योंकि भिखारी उनके साथ के बेच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा था। जो 10 साल से सड़कों पर लावारिस हाल में घूम रहा था।
DSP’s batchmate begging on the streets, know why
Gwalior.DSP’s batchmate begging on the streets, know why On November 10, the night of the counting of elections, at 1:30 pm, when two DSPs posted in the security system are staring cold from the roadside and looking for beggars looking for food in the garbage, one officer gives away his shoes and the other his jacket. When both DSPs start leaving, the beggar calls the DSP by name. After which both are taken aback and when they recognize the beggar by turning around, they themselves are surprised as the beggar was with them the sub-inspector Manish Mishra. Who had been roaming the streets in an abandoned hall for 10 years.
दरअसल मनीष मिश्रा अपना मानसिक संतुलन खो बैठे वह शुरुआत में 5 साल तक घर पर रहे इसके बाद घर में नहीं रुके यहां तक कि इलाज के लिए जिन सेंटर व आश्रम में भर्ती कराया वहां से भी भाग गए थे, जो अब सड़को पर भीख मांग कर अपना जीवन यापन कर रहे है।
अचूक निशानेबाज थे मनीष
ग्वालियर के झांसी रोड इलाके में सालों से सड़कों पर लावारिस घूम रहे मनीष सन् 1999 पुलिस बैच का अचूक निशानेबाज थानेदार थे। मनीष दोनों अफसरों के साथ 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में भर्ती हुआ था। दोनों डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदोरिया ने इसके बाद काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बात की और अपने साथ ले जाने की जिद की जबकि वह साथ जाने को राजी नहीं हुआ। आखिर में समाज सेवी संस्था से उसे आश्रम भिजवा दिया गया जहां उसकी अब बेहतर देखरेख हो रही है।
परिवार में सभी अच्छे पदों पर पदस्थ
मनीष मिश्रा के परिवार की बात की जाए तो उनके भाई भी टीआई है पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं। चचेरी बहन दूतावास में पदस्थ है और मनीष मिश्रा द्वारा खुद 2005 तक नौकरी की गई है। आखिरी समय तक वह दतिया जिले में पदस्थ रहे इसके बाद मानसिक संतुलन खो बैठे। पत्नी से उनका तलाक हो चुका है जो न्यायिक सेवा में पदस्थ है। लिहाजा इस घटनाक्रम से जितने यह अधिकारी हैरान हुए उतने लोग भी हैरान हो रहे है, लेकिन खुशी इस बात की है कि अब मनीष ग्वालियर के एक सामाजिक आश्रम में रह रही है और उनका इलाज किया जा रहा है।