फरीदाबाद: मां का दावा डॉक्टरों ने बेटी को Mortuary के फ्रीजर में रखवा दिया, जबकि वह ज़िंदा थी 

फरीदाबाद। हरियाणा के फरीदाबाद से सामने आया एक मामला न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला भी है। यहां एक मां अपनी 12 वर्षीय बेटी को मृत घोषित किए जाने के बाद भी यह मानने को तैयार नहीं हुई कि उसकी संतान दुनिया छोड़ चुकी है। इसी विश्वास ने उसे वह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया, जिसने पूरे अस्पताल प्रशासन और पुलिस को सकते में डाल दिया।

पेट दर्द से अस्पताल तक की कहानी

रविवार दोपहर संजय कॉलोनी निवासी रीना देवी अपनी 12 वर्षीय बेटी भूमिका को पेट दर्द की शिकायत के चलते फरीदाबाद के सिविल अस्पताल लेकर पहुंचीं। डॉक्टरों ने बच्ची को Emergency में जांचा। करीब आधे घंटे बाद डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।

डॉक्टरों के अनुसार, सभी आवश्यक चिकित्सकीय परीक्षणों के बाद बच्ची में किसी प्रकार की जीवन-प्रतिक्रिया नहीं पाई गई। इसके बाद नियमानुसार शव को Mortuary के फ्रीजर में रखवा दिया गया।

मॉर्च्युरी में टूटा मां का सब्र

जब यह सूचना रीना देवी को दी गई, तो वह खुद को संभाल नहीं सकीं। वह सीधे मॉर्च्युरी पहुंचीं और अपने देवर के साथ मिलकर फ्रीजर से बच्ची के शव को बाहर निकाल लिया। मौके पर मौजूद पोस्टमॉर्टम डॉक्टर और कर्मचारी उन्हें रोकने की कोशिश करते रहे, लेकिन मां का आक्रोश और बेबसी भारी पड़ गई।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, धक्का-मुक्की के बीच महिला बच्ची को बाइक पर बीच में बैठाकर अस्पताल परिसर से निकल गई।

दूसरी उम्मीद, दूसरा अस्पताल

रीना देवी पहले बच्ची को घर लेकर गईं। उनका दावा है कि शरीर की मालिश करने पर बच्ची का शरीर गर्म हुआ और उसने आंखें खोलीं। इसके बाद वह बच्ची को एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचीं, जहां डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया।

हालांकि, करीब एक घंटे बाद वहां के डॉक्टरों ने भी बच्ची को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई और शव को दोबारा सिविल अस्पताल की मॉर्च्युरी में रखवाया गया।

मां का दावा, डॉक्टरों का खंडन

रीना देवी का कहना है कि जब उन्होंने बच्ची को फ्रीजर से बाहर निकाला, तब उसके मुंह से झाग निकल रहा था और नाक से खून बह रहा था। उनका दावा है कि बच्ची की सांसें चल रही थीं, इसलिए वह उसे जिंदा मान रही थीं।

वहीं पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर शीशपाल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बच्ची को अस्पताल में Dead अवस्था में लाया गया था और सभी चिकित्सकीय मानकों के अनुसार ही उसे मृत घोषित किया गया।

पुलिस की भूमिका और जांच

मामले में पुलिस ने कहा है कि बच्ची पहले से ही मृत थी। एएसआई सुनील कुमार के अनुसार, परिजन अपनी संतुष्टि के लिए बच्ची को दूसरे अस्पताल ले गए थे। पूरे घटनाक्रम की जानकारी जुटाई जा रही है और नियमानुसार कार्रवाई की जा रही है।

सवाल जो अब भी बाकी हैं

यह घटना केवल एक मेडिकल मामला नहीं, बल्कि विश्वास, सदमे और सिस्टम के बीच टकराव की कहानी है। मां का दर्द, डॉक्टरों की प्रक्रिया और प्रशासन की जिम्मेदारी—तीनों के बीच संतुलन खोजना अब जांच का विषय बन गया है।

फरीदाबाद: मां का दावा डॉक्टरों ने बेटी को Mortuary के फ्रीजर में रखवा दिया, जबकि व ज़िंदा थी

फरीदाबाद। हरियाणा के फरीदाबाद से सामने आया एक मामला न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला भी है। यहां एक मां अपनी 12 वर्षीय बेटी को मृत घोषित किए जाने के बाद भी यह मानने को तैयार नहीं हुई कि उसकी संतान दुनिया छोड़ चुकी है। इसी विश्वास ने उसे वह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया, जिसने पूरे अस्पताल प्रशासन और पुलिस को सकते में डाल दिया।

पेट दर्द से अस्पताल तक की कहानी

रविवार दोपहर संजय कॉलोनी निवासी रीना देवी अपनी 12 वर्षीय बेटी भूमिका को पेट दर्द की शिकायत के चलते फरीदाबाद के सिविल अस्पताल लेकर पहुंचीं। डॉक्टरों ने बच्ची को Emergency में जांचा। करीब आधे घंटे बाद डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।

डॉक्टरों के अनुसार, सभी आवश्यक चिकित्सकीय परीक्षणों के बाद बच्ची में किसी प्रकार की जीवन-प्रतिक्रिया नहीं पाई गई। इसके बाद नियमानुसार शव को Mortuary के फ्रीजर में रखवा दिया गया।

 

मॉर्च्युरी में टूटा मां का सब्र

जब यह सूचना रीना देवी को दी गई, तो वह खुद को संभाल नहीं सकीं। वह सीधे मॉर्च्युरी पहुंचीं और अपने देवर के साथ मिलकर फ्रीजर से बच्ची के शव को बाहर निकाल लिया। मौके पर मौजूद पोस्टमॉर्टम डॉक्टर और कर्मचारी उन्हें रोकने की कोशिश करते रहे, लेकिन मां का आक्रोश और बेबसी भारी पड़ गई।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, धक्का-मुक्की के बीच महिला बच्ची को बाइक पर बीच में बैठाकर अस्पताल परिसर से निकल गई।

 

दूसरी उम्मीद, दूसरा अस्पताल

रीना देवी पहले बच्ची को घर लेकर गईं। उनका दावा है कि शरीर की मालिश करने पर बच्ची का शरीर गर्म हुआ और उसने आंखें खोलीं। इसके बाद वह बच्ची को एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचीं, जहां डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया।

हालांकि, करीब एक घंटे बाद वहां के डॉक्टरों ने भी बच्ची को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई और शव को दोबारा सिविल अस्पताल की मॉर्च्युरी में रखवाया गया।

 

मां का दावा, डॉक्टरों का खंडन

रीना देवी का कहना है कि जब उन्होंने बच्ची को फ्रीजर से बाहर निकाला, तब उसके मुंह से झाग निकल रहा था और नाक से खून बह रहा था। उनका दावा है कि बच्ची की सांसें चल रही थीं, इसलिए वह उसे जिंदा मान रही थीं।

वहीं पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर शीशपाल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बच्ची को अस्पताल में Dead अवस्था में लाया गया था और सभी चिकित्सकीय मानकों के अनुसार ही उसे मृत घोषित किया गया।

 

पुलिस की भूमिका और जांच

मामले में पुलिस ने कहा है कि बच्ची पहले से ही मृत थी। एएसआई सुनील कुमार के अनुसार, परिजन अपनी संतुष्टि के लिए बच्ची को दूसरे अस्पताल ले गए थे। पूरे घटनाक्रम की जानकारी जुटाई जा रही है और नियमानुसार कार्रवाई की जा रही है।

 

सवाल जो अब भी बाकी हैं

यह घटना केवल एक मेडिकल मामला नहीं, बल्कि विश्वास, सदमे और सिस्टम के बीच टकराव की कहानी है। मां का दर्द, डॉक्टरों की प्रक्रिया और प्रशासन की जिम्मेदारी—तीनों के बीच संतुलन खोजना अब जांच का विषय बन गया है।

 

Emergency, Mortuary, Dead, Postmortem, Police Investigation, Civil Hospital, Medical Protocol

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