टकराव बढ़ाः लद्दाख के खिलाफ बोला चीन तो भारत ने दोटूक कहा हम नहीं मानते एलएसी का 1959 प्रस्ताव

नई दिल्ली। पिछले एक पखवाड़े के दौरान पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से कोई आपत्तिजनक खबर नहीं आई है। इसी बीच एलएसी को लेकर भारत व चीन के बीच नई कूटनीतिक जंग शुरु हो गई है। भारत ने चीन के इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है कि दोनो देशों के बीच वर्ष 1959 में निर्धारित एलएसी को लेकर बातचीत हो रही है। भारत ने चीन को यह सलाह भी दी है कि दोनो देशों के बीच एलएसी निर्धारण को लेकर जब कई दशकों से बैठकों का दौर चल रहा है तो वह अपनी तरह से इसको तय करने की कोशिश नहीं करे।

Conflict escalated: China said against Ladakh, India curtly said we do not accept the 1959 proposal of LAC

New Delhi. There has been no objectionable news from the Line of Actual Control (LAC) in East Ladakh during the last fortnight. Meanwhile, a new diplomatic battle has started between India and China over LAC. India has completely rejected China’s claim that talks between the two countries on the LAC set in 1959 are being held. India has also advised China not to try to decide it in its own way when the two countries are going through a series of meetings on LAC determination.

उधर, चीन के विदेश मंत्रालय ने भी लद्दाख को लेकर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है कि, चीन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को भारत का हिस्सा नहीं मानता। भारत इस क्षेत्र में सैन्य उद्देश्य से ढांचागत विकास कर रहा है, हम इस पर जल्द से जल्द रोक लगाने की मांग करते हैं।

वेनबिन ने यह भी कहा कि भारत ने इस हिस्से को गैर कानूनी तरीके से कब्जा कर रखा है।

यह पहला मौका है जब चीन ने लद्दाख को लेकर इस तरह की स्पष्ट टिप्पणी की है और वह भी तब जब दोनो देशों की सेनाओं के बीच साढ़े चार महीने से तनाव है।

लद्दाख के कई हिस्से पर दोनो देशों की सेनाएं कुछ सौ मीटर पर तैनात है।

सर्दियों के शुरु होने में कुछ हफ्ते बाकी है और दोनो तरफ से भारी साजो समान का जमावड़ा किया जा रहा है।

साथ ही दोनो देशों के बीच तनाव को खत्म करने की बातचीत का सिलसिला भी जारी है।

10 सितंबर, 2020 को दोनो देशों के विदेश मंत्रियों के बीच तनाव खात्मे को लेकर बातचीत भी हुई थी।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्ताव ने बताया कि, भारत ने कभी भी वर्ष 1959 में चीन की तरफ से प्रस्तावित एलएसी को स्वीकार नहीं किया है। यह भारत की पुरानी राय है और इस बारे में चीनी पक्ष को भी लगातार बताया गया है।

दोनांे देशों के बीच वर्ष 1993 में एलएसी पर अमन-शांति बहाली करने के लिए किये गये समझौते, वर्ष 1996 में विश्वास बहाली के लिए किये गये समझौते, वर्ष 2005 में सीमा विवाद सुलझाने के लिए किया गया राजनीतिक समझौते में दोनो पक्षों ने एलएसी को स्वीकार किया है। वर्ष 2003 में दोनों पक्षों ने एलएसी को चिन्हित करने के लिए भी बातचीत का दौर शुरु किया था, लेकिन चीन के रवैये की वजह से यह आगे नहीं बढ़ सका। चीनी पक्ष ने इस पर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई थी।

श्रीवास्तव ने आगे कहा है कि भारतीय पक्ष ने एलएसी का हमेशा आदर किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में संसद में भी यही बात कही है। चीनी पक्ष की तरफ से एलएसी के कई हिस्सों को बदलने की कोशिश की जा रही है।

हाल के महीनों में भी चीनी पक्ष ने यह बात दोहराई है कि मौजूदा तनाव को दोनो देशों के बीच किये गये समझौते के मुताबिक सुलझाया जाना चाहिए। 10 सितंबर को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की चीनी विदेश मंत्री से हुई बातचीत में भी मौजूदा समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई गई थी।

भारत उम्मीद करता है कि चीनी पक्ष पूर्व किये गये सभी समझौतों को स्वीकार करेगा और एलएसी की स्थिति को अपनी तरफ से बदलने की कोशिश नहीं करेगा।

क्या था 1959 का प्रस्ताव

चीन के विदेश मंत्रालय ने पहले एक भारतीय समाचार पत्र में बयान दिया कि वह 1959 में पूर्व पीएम झाऊ एनलाई की तरफ से पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रस्तावित एलएसी को लेकर अभी भी प्रतिबद्ध है।

भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से मंगलवार को दिये गये जवाब से साफ है कि पूर्व पीएम नेहरू ने भी जिस प्रस्ताव को खारिज किया था, भारत अब भी उसे स्वीकार नहीं करता है।

वर्ष 1959 में दोनो तरफ की सेनाओं के बीच कोंगका ला में झड़प होने के बाद पूर्व पीएम झाऊ एनलाई ने भारतीय पीएम को पत्र लिखा था जिसमें दोनो तरफ की सेनाओं को मैकमोहन रेखा से 20-20 किलोमीटर दूर जाने की बात कही गई थी। इस तरह से दोनो सेनाओं के बीच 40 किलोमीटर की दूरी हो जाती।

दरअसल इसी बहाने चीन भारत को बढ़त की पोजीशन से पीछे भेजना चाहता था। जब भी लद्दाख सेक्टर में दोनो देशों की सेनाओं के बीच झड़प होती है तब चीन वर्ष 1959 में प्रस्तावित एलएसी की बात करता है। अगस्त, 2017 में भी वह ऐसा कह चुका है।

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