श्रीकृष्ण जन्मभूमिः ओवैसी की दलील इसलिए फीकी पड़ जाएगी, जानिए क्यों

नई दिल्ली। एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के लिए श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से दायर याचिका को इस बिंदु पर आधारहीन करार दिया है कि शाही ईदगाह र्ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने इस विवाद का निपटारा साल 1968 में एक समझौते के अंतर्गत कर लिया था। इसे अब फिर से जीवित क्यों किया जा रहा है? किंतु अब अन्य नया विधिक बिंदु उभरकर आया है कि इससे ओवैसी का तर्क न्यायालय में खारिज हो जाएगा।

Sri Krishna Janmabhoomi: That’s why Owaisi’s plea will fade, know why

New Delhi. AIMIM chief Asaduddin Owaisi has dismissed the petition filed by Sri Krishna Virajaman for the Sri Krishna Janmabhoomi as baseless to the point that Shahi Idgah Trust and Sri Krishna Janmasthana Seva Sangh settled the dispute under an agreement in 1968. Why is it being revived now? But now another new legal point has emerged that this will dismiss Owaisi’s argument in the court. Advocate Vishnu Jain has stated that the agreement reached in the Krishna Krishna Janmabhoomi case on October 12, 1968, was not signed by the Sri Krishna Janmabhoomi Trust, hence the agreement is invalid.

अधिवक्ता विष्णु जैन ने बताया है कि श्रीकृष्णजन्म भूमि प्रकरण में 12 अक्टूबर, 1968 को जो समझौता हुआ था, उस पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसलिए वह समझौता अवैध है।

उन्होंने कहा कि इसलिए, जिला न्यायाधीश ने निर्णय दिया है कि, भगवान और भक्त दोनों ही इस प्रकरण में दावा प्रविष्ट कर सकते हैं। दीवानी न्यायालय का निर्णय निरस्त होकर जिला न्यायालय में दावे की सुनवाई प्रारंभ होगी।

यहां की 13.37 एकड भूमि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की संपत्ति है, उसमें से एक इंच भूमि पर भी अवैध मस्जिद नहीं रह सकती। वह मस्जिद हटानी चाहिए। श्रीकृष्णभूमि के लिए हम संघर्ष करते ही रहेंगे। यह दृढ़ प्रतिपादन इस प्रकरण में संघर्ष करनेवाले सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता तथा हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस के प्रवक्ता विष्णु शंकर जैन ने व्यक्त किया ।

हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा लिए गए विशेष ऑनलाइन परिसंवाद में भूमिका प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता विष्णु जैन ने कहा कि औरंगजेब के लिखित आदेशानुसार मथुरा का वर्तमान मंदिर ही श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है तथा इसके लिखित प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं।

विष्णु जैन के अनुसार

स्वतंत्रता से पूर्व हिन्दुओं ने अनेक बार श्रीकृष्ण जन्मभूमि का दावा जीता था।

वर्ष 1951 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर सेवा ट्रस्ट’ की वैधानिक स्थापना की थी।

तब भी वर्ष 1956 में कांग्रेसियों ने ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ’ नामक झूठे संघ की स्थापना की थी।

इस संघ ने न्यायालय में ‘यह भूमि हमें मिल गई है’, ऐसी याचिका प्रविष्ट की। आगे

इस याचिका पर न्यायालय में मुस्लिम पक्षकार और श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ में समझौता होकर मूल मंदिर का स्थान मस्जिद के पास ही रहेगा, ऐसा निर्णय वर्ष 1968 में दिया गया। वह निर्णय पूर्णतः अवैध है।

यदि पुरातत्त्व विभाग श्रीकृष्ण मंदिर से लगी हुई मस्जिद के नीचे खुदाई करे, तो यहां भी मूल अवशेष निश्चित मिलेंगे।

वे हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति का संघर्ष’ इस विशेष परिसंवाद में बोल रहे थे।

यह कार्यक्रम ‘फेसबुक’ और ‘यू-ट्यूब’ के माध्यम से 19,677 लोगों ने प्रत्यक्ष देखा तथा 39,219 लोगों तक पहुंचा। इस विषय का ‘हैशटैग’ ट्वीटर पर प्रथम क्रमांक के ट्रेंड में था।

श्रीकृष्णजन्मभूमि प्रकरण में दीवानी न्यायालय में प्रविष्ट याचिका अयोग्य प्रकार से निरस्त की गई थीं अब यही याचिका जिला न्यायाधीश ने स्वीकार कर ली है तथा दावा चलाया जाने वाला है।

यह बात हमारे लिए अत्यंत आनंददायी और महत्त्वपूर्ण है तथा यह तो श्री कृष्णजन्मभूमि आंदोलन के संघर्ष की विजय का प्रारंभ है, ऐसी प्रतिक्रिया हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने इस प्रकरण में व्यक्त की है।

 

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